दार्जिलिंग हिमालयी रेल
दार्जिलिंग हिमालयी रेल, जिसे "टॉय ट्रेन" के नाम से भी जाना जाता है भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलने वाली एक छोटी लाइन की रेलवे प्रणाली है। इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था और इसकी कुल लंबाई 78 किलोमीटर (48 मील) है। जिसमें 13 स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी टाउन, सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगटंग, तिनधरिया, गयाबाड़ी, महानदी, कुर्सियांग, टुंग, सोनादा, घुम और दार्जिलिंग पड़ते हैं। इसकी रफ़्तार अधिकतम 20 किमी प्रति घंटा है।
इसकी ऊंचाई स्तर न्यू जलपाईगुड़ी में लगभग 100 मीटर (328 फीट) से लेकर दार्जिलिंग में 2,200 मीटर (7,218 फुट) तक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण अंग्रेज़ों ने सन् 1882 में ईस्ट इंडिया कंपनी के मज़दूरों को पहाड़ों तक पहुंचाने के लिए किया था। तब का दार्जिलिंग शहर आज के दार्जिलिंग से बिलकुल जुदा था तब वहां सिर्फ 1 मोनेस्ट्री, ओब्ज़र्वेटरी हिल, 20 झोंपड़ियां और लगभग 100 लोगों की आबादी थी, लेकिन आज का नजारा पूरी तरह बदल चुका है। इस रेलवे को यूनेस्को द्वारा नीलगिरि पर्वतीय रेल और कालका शिमला रेलवे के साथ भारत की पर्वतीय रेल के रूप में विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इस रेलवे का मुख्यालय कुर्सियांग शहर में है।
इसकी अनुसूचित सेवाओं का परिचालन मुख्यत: चार आधुनिक डीजल इंजनों द्वारा किया जाता है, हालाँकि दैनिक कुर्सियांग-दार्जिलिंग वापसी सेवा और दार्जिलिंग से घुम (भारत का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन) के बीच चलने वाली दैनिक पर्यटन गाड़ियों का परिचालन पुराने ब्रिटिश निर्मित बी श्रेणी के भाप इंजन, डीएचआर 778 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
दार्जिलिंग की यात्रा का सबसे अच्छा समय:
दार्जिलिंग की टेम्परेट मौसम मैं 5 ऋतु होते है: बसन्त, गृष्म, शरद, शीत और मनसून।
शीत ऋतु में (सितंबर, अक्टूबर और नवंबर)
दार्जिलिंग में शरद ऋतु सितंबर में शुरू होती है और नवम्बर तक रहता है। शरद ऋतु दार्जिलिंग की यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ मौसम में से एक है। इस मौसम में धुंध हट जाता है और आकाश साफ़ होता है और कंचनजंगा और हिमालय के दृश्यों का आनंद लेने का सर्वोत्तम समय होता है। कभी-कभी बारिश होती है। अक्टूबर में इस शहर की सुंदरता और ज्यादा अपने रंग बिखेरती है।
शीतकालीन मौसम में (दिसंबर, जनवरी और फरवरी)
शीतकालीन दिसंबर में शुरू होता है और फरवरी तक चलता है। जनवरी मौसम का सबसे ठंडा महीना होता है। यह हनीमून के लिए भी एक अच्छा समय है। इस मौसम में बर्फवारी आम बात है।
वसंत / ग्रीष्मकालीन मौसम में (मार्च, अप्रैल और मई)
इस मौसम में ठण्ड कम हो जाती है। यह मौसम दार्जिलिंग की यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ मौसम में से एक है। रंगीन मैगनोलिया और रोडोडेंड्रोन फूलों के चारों ओर फूलते हैं। मई में, बाहरी गतिविधियों का आनंद लेने के लिए मौसम काफी गर्म हो जाता है।
मॉनसून मौसम में (जून, जुलाई और अगस्त)
दार्जिलिंग में मानसून जून के अंतिम सप्ताह से शुरू होता है और अगस्त तक चलता रहता है। आसमान में बादल छाए रहेंगे और हलकी-हलकी बारिश भी होती रहती है। पिछले वर्ष के रिकॉर्ड के अनुसार, जुलाई और अगस्त के महीनों में लगभग 700 मिमी बारिश हुई है। पर्यटक गतिविधियों सुस्त हैं इसलिए होटल, टैक्सी आदि सस्ता टैरिफ पर उपलब्ध हैं।
दार्जिलिंग की सबसे अच्छी जगह:
टाइगर हिल
टाइगर हिल का मुख्य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। 1838 से 1849 ई. तक इसे ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन 1856 ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्ट का नाम दिया था, विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है।
सक्या मठ
यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सक्या मठ सक्या सम्प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मठ है। इस मठ की स्थापना १९१५ ई. में की गई थी। इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ्ा ६० बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं।
ड्रुग-थुब्तन-साङ्गग-छोस्लिंग-मठ
11वें ग्यल्वाङ ड्रुगछेन तन्जीन ख्येन्-रब गेलेगस् वाङ्गपो की मृत्यु 1960 ई. में हो गई थी। इन्हीं के याद में इस मठ की स्थापना 1971 ई. में की गई थी। इस मठ की बनावट तिब्बतियन शैली में की गई थी। बाद में इस मठ की पुनर्स्थापना 1993 ई. में की गई। इसका अनावरण दलाई लामा ने किया था।
माकडोग मठ
यह मठ चौरास्ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य 1914 ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।
जापानी मंदिर (पीस पैगोडा)
विश्व में शांति लाने के लिए इस स्तूप की स्थापना फूजी गुरु जो कि महात्मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्तूप हैं। निप्पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य १९७२ ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर १ नवम्बर १९९२ ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है।
भूटिया-बस्ती-मठ
यह डार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है। यह मूल रूप से ऑब्जरबेटरी हिल पर १७६५ ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था। इस मठ को नेपालियों ने 1815 ई. में लूट लिया था। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861 ई. की गई। अंतत: यह अपने वर्तमान स्थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्ती में 1871 ई. स्थापित हुआ। यह मठ तिब्बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है। इस मठ में भी बहुमूल्य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है।
चाय उद्यान
डार्जिलिंग एक समय मसालों के लिए प्रसिद्ध था। चाय के लिए ही डार्जिलिंग विश्व स्तर पर जाना जाता है। डॉ॰ कैम्पबेल जो कि डार्जिलिंग में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त पहले निरीक्षक थे, पहली बार लगभग 1830 या 40 के दशक में अपने बाग में चाय के बीज को रोपा था। ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880 के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था। बारेन बंधुओं ने इस दिशा में काफी काम किया था। बारेन बंधओं द्वारा लगाया गया चाय उद्यान वर्तमान में बैनुकवर्ण चाय उद्यान के नाम से जाना जाता है।
कैसे जाएं:
हवाई मार्ग
यह स्थान देश के हरेक जगह से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। बागदोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा (90 किलोमीटर) है। यह दार्जिलिंग से 2 घण्टे की दूरी पर है। यहां से कलकत्ता और दिल्ली के प्रतिदिन उड़ाने संचालित की जाती है। इसके अलावा गुवाहाटी तथा पटना से भी यहां के लिए उड़ाने संचालित की जाती है।
रेलमार्ग
इसका सबसे नजदीकी रेल जोन जलपाइगुड़ी है। कलकत्ता से दार्जिलिंग मेल तथा कामरुप एक्सप्रेस जलपाइगुड़ी जाती है। दिल्ली से गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस यहां तक आती है। इसके अलावा ट्वाय ट्रेन से जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग (8-9 घंटा) तक जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग
यह शहर सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दार्जिलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घण्टे की दूरी पर स्थित है। कलकत्ता से सिलीगुड़ी के लिए बहुत सी सरकारी और निजी बसें चलती है।
ट्रेन किराया:
डीजल इंजन की सवारी: प्रथम श्रेणी का टिकट 695 रुपए
भाप इंजन की सवारी: प्रथम श्रेणी का टिकट 1,065 रुपए