1. दार्जिलिंग हिमालयी रेल
दार्जिलिंग हिमालयी रेल, जिसे "टॉय ट्रेन" के नाम से भी जाना जाता है भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलने वाली एक छोटी लाइन की रेलवे प्रणाली है। इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था और इसकी कुल लंबाई 78 किलोमीटर (48 मील) है। जिसमें 13 स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी टाउन, सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगटंग, तिनधरिया, गयाबाड़ी, महानदी, कुर्सियांग, टुंग, सोनादा, घुम और दार्जिलिंग पड़ते हैं। इसकी रफ़्तार अधिकतम 20 किमी प्रति घंटा है।
इसकी ऊंचाई स्तर न्यू जलपाईगुड़ी में लगभग 100 मीटर (328 फीट) से लेकर दार्जिलिंग में 2,200 मीटर (7,218 फुट) तक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण अंग्रेज़ों ने सन् 1882 में ईस्ट इंडिया कंपनी के मज़दूरों को पहाड़ों तक पहुंचाने के लिए किया था। तब का दार्जिलिंग शहर आज के दार्जिलिंग से बिलकुल जुदा था तब वहां सिर्फ 1 मोनेस्ट्री, ओब्ज़र्वेटरी हिल, 20 झोंपड़ियां और लगभग 100 लोगों की आबादी थी, लेकिन आज का नजारा पूरी तरह बदल चुका है। इस रेलवे को यूनेस्को द्वारा नीलगिरि पर्वतीय रेल और कालका शिमला रेलवे के साथ भारत की पर्वतीय रेल के रूप में विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इस रेलवे का मुख्यालय कुर्सियांग शहर में है।
इसकी अनुसूचित सेवाओं का परिचालन मुख्यत: चार आधुनिक डीजल इंजनों द्वारा किया जाता है, हालाँकि दैनिक कुर्सियांग-दार्जिलिंग वापसी सेवा और दार्जिलिंग से घुम (भारत का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन) के बीच चलने वाली दैनिक पर्यटन गाड़ियों का परिचालन पुराने ब्रिटिश निर्मित बी श्रेणी के भाप इंजन, डीएचआर 778 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
दार्जिलिंग की यात्रा का सबसे अच्छा समय
दार्जिलिंग की टेम्परेट मौसम मैं 5 ऋतु होते है: बसन्त, गृष्म, शरद, शीत और मनसून।
शीत ऋतु में (सितंबर, अक्टूबर और नवंबर)
दार्जिलिंग में शरद ऋतु सितंबर में शुरू होती है और नवम्बर तक रहता है। शरद ऋतु दार्जिलिंग की यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ मौसम में से एक है। इस मौसम में धुंध हट जाता है और आकाश साफ़ होता है और कंचनजंगा और हिमालय के दृश्यों का आनंद लेने का सर्वोत्तम समय होता है। कभी-कभी बारिश होती है। अक्टूबर में इस शहर की सुंदरता और ज्यादा अपने रंग बिखेरती है।
शीतकालीन मौसम में (दिसंबर, जनवरी और फरवरी)
शीतकालीन दिसंबर में शुरू होता है और फरवरी तक चलता है। जनवरी मौसम का सबसे ठंडा महीना होता है। यह हनीमून के लिए भी एक अच्छा समय है। इस मौसम में बर्फवारी आम बात है।
वसंत / ग्रीष्मकालीन मौसम में (मार्च, अप्रैल और मई)
इस मौसम में ठण्ड कम हो जाती है। यह मौसम दार्जिलिंग की यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ मौसम में से एक है। रंगीन मैगनोलिया और रोडोडेंड्रोन फूलों के चारों ओर फूलते हैं। मई में, बाहरी गतिविधियों का आनंद लेने के लिए मौसम काफी गर्म हो जाता है।
मॉनसून मौसम में (जून, जुलाई और अगस्त)
दार्जिलिंग में मानसून जून के अंतिम सप्ताह से शुरू होता है और अगस्त तक चलता रहता है। आसमान में बादल छाए रहेंगे और हलकी-हलकी बारिश भी होती रहती है। पिछले वर्ष के रिकॉर्ड के अनुसार, जुलाई और अगस्त के महीनों में लगभग 700 मिमी बारिश हुई है। पर्यटक गतिविधियों सुस्त हैं इसलिए होटल, टैक्सी आदि सस्ता टैरिफ पर उपलब्ध हैं।
दार्जिलिंग की सबसे अच्छी जगह:
टाइगर हिल
टाइगर हिल का मुख्य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। 1838 से 1849 ई. तक इसे ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन 1856 ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्ट का नाम दिया था, विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है।
सक्या मठ
यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सक्या मठ सक्या सम्प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मठ है। इस मठ की स्थापना १९१५ ई. में की गई थी। इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ्ा ६० बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं।
ड्रुग-थुब्तन-साङ्गग-छोस्लिंग-मठ
11वें ग्यल्वाङ ड्रुगछेन तन्जीन ख्येन्-रब गेलेगस् वाङ्गपो की मृत्यु 1960 ई. में हो गई थी। इन्हीं के याद में इस मठ की स्थापना 1971 ई. में की गई थी। इस मठ की बनावट तिब्बतियन शैली में की गई थी। बाद में इस मठ की पुनर्स्थापना 1993 ई. में की गई। इसका अनावरण दलाई लामा ने किया था।
माकडोग मठ
यह मठ चौरास्ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य 1914 ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।
जापानी मंदिर (पीस पैगोडा)
विश्व में शांति लाने के लिए इस स्तूप की स्थापना फूजी गुरु जो कि महात्मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्तूप हैं। निप्पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य १९७२ ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर १ नवम्बर १९९२ ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है।
भूटिया-बस्ती-मठ
यह डार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है। यह मूल रूप से ऑब्जरबेटरी हिल पर १७६५ ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था। इस मठ को नेपालियों ने 1815 ई. में लूट लिया था। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861 ई. की गई। अंतत: यह अपने वर्तमान स्थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्ती में 1871 ई. स्थापित हुआ। यह मठ तिब्बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है। इस मठ में भी बहुमूल्य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है।
चाय उद्यान
डार्जिलिंग एक समय मसालों के लिए प्रसिद्ध था। चाय के लिए ही डार्जिलिंग विश्व स्तर पर जाना जाता है। डॉ॰ कैम्पबेल जो कि डार्जिलिंग में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त पहले निरीक्षक थे, पहली बार लगभग 1830 या 40 के दशक में अपने बाग में चाय के बीज को रोपा था। ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880 के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था। बारेन बंधुओं ने इस दिशा में काफी काम किया था। बारेन बंधओं द्वारा लगाया गया चाय उद्यान वर्तमान में बैनुकवर्ण चाय उद्यान के नाम से जाना जाता है।
कैसे जाएं:
हवाई मार्ग
यह स्थान देश के हरेक जगह से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। बागदोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा (90 किलोमीटर) है। यह दार्जिलिंग से 2 घण्टे की दूरी पर है। यहां से कलकत्ता और दिल्ली के प्रतिदिन उड़ाने संचालित की जाती है। इसके अलावा गुवाहाटी तथा पटना से भी यहां के लिए उड़ाने संचालित की जाती है।
रेलमार्ग
इसका सबसे नजदीकी रेल जोन जलपाइगुड़ी है। कलकत्ता से दार्जिलिंग मेल तथा कामरुप एक्सप्रेस जलपाइगुड़ी जाती है। दिल्ली से गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस यहां तक आती है। इसके अलावा ट्वाय ट्रेन से जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग (8-9 घंटा) तक जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग
यह शहर सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दार्जिलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घण्टे की दूरी पर स्थित है। कलकत्ता से सिलीगुड़ी के लिए बहुत सी सरकारी और निजी बसें चलती है।
ट्रेन किराया:
डीजल इंजन की सवारी: प्रथम श्रेणी का टिकट 695 रुपए
भाप इंजन की सवारी: प्रथम श्रेणी का टिकट 1,065 रुपए
2. नीलगिरि पर्वतीय रेल
नीलगिरि पर्वतीय रेल, भारत के राज्य तमिलनाडु में स्थित एक रेल प्रणाली है, जिसे 1908 में ब्रिटिश राज के दौरान बनाया गया था। शुरूआत में इसका संचालन मद्रास रेलवे द्वारा किया जाता था। इस रेलवे का परिचालन आज भी भाप इंजनों द्वारा किया जाता है। नीलगिरि पर्वतीय रेल, नवगठित सलेम मंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है। जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरि पर्वतीय रेल को दार्जिलिंग हिमालयी रेल के विश्व धरोहर स्थल के एक विस्तार के रूप में मान्यता दी थी और तब से इन्हें संयुक्त रूप से "भारत की पर्वतीय रेल" के नाम से जाना जाता है। इसे यह मान्यता मिलने के बाद इसकी आधुनिकीकरण की योजना का परित्याग कर दिया गया। पिछले कई वर्षों से कुन्नूर और उदम मंडलम के बीच के खंड पर भाप के इंजनों के स्थान पर लिए डीजल इंजनों का प्रयोग किया जा रहा है। स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने इस खंड पर एक बार फिर से भाप इंजनों द्वारा रेलगाड़ी चलाने की मांग की है।
निलगिरी माउंटेन रेलवे एक सिंगल रेलवे ट्रैक है, 46 किलोमीटर (29 मील) लंबा मीटर एक सिंगल ट्रैक है जोकि मेट्टुपालयम शहर को उटकमंडलम (ओटाकामुंड) शहर से जोड़ता है। इस 46 किलोमीटर के सफ़र में 208 मोड़, 16टनल और 250 ब्रिज पड़ते हैं। इस मार्ग पर चढ़ाई की यात्रा लगभग 290 मिनट (4.8 घंटे) में पूरी होती है, जबकि डाउनहिल यात्रा में केवल 215 मिनट (3.6 घंटे) लगते हैं।
शाहरुख़ खान द्वारा अभिनीत हिंदी फिल्म "दिल से" के प्रसिद्ध हिंदी गीत छैंया छैंया का फिल्मांकन इसी रेलवे की रेलगाड़ी की छत पर किया गया है।
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन:
0 किमी मेट्टुपालयम(कोयंबटूर)
8 किमी कालर
13 किमी एडर्ली
18 किमी हिलग्रोव
21 किमी रनीमीड
25 किमी कटेरी रोड
28 किमी कुन्नूर
29 किमी वेलिंग्टन
32 किमी अरुवंकाडु
38 किमी केत्ति
42 किमी लवडेल
46 किमी उदगमंडलम
ट्रेन किराया:
रु. 205/- प्रथम श्रेणी में
रु. 40/- द्वतीय श्रेणी में
रु. 15/- जनरल
नीलगिरि पर्वतीय रेल के पास की सबसे अच्छी जगह:
- वेस्टर्न कैचमेंट
- थंडर वर्ल्ड
- मेन बाज़ार
- ऊटी लेक
- रोज गार्डन
- थ्रेड गार्डन
- लेडी कैनिंग सीट
- बोटैनिकल गार्डन्स
3. कालका शिमला रेलवे
ब्रिटिश शासन की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को कालका से जोड़ने के लिए 1896 में दिल्ली अंबाला कंपनी को इस रेलमार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। समुद्र तल से 656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालका (हरियाणा) रेलवे स्टेशन को छोड़ने के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए 2,076 मीटर ऊपर स्थित शिमला तक जाती है। 24 जुलाई 2008 को इसे युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।
दो फीट छह इंच की इस नैरो गेज लेन पर नौ नवंबर, 1903 से आजतक रेल यातायात जारी है। कालका-शिमला रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर 919 घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। इस मार्ग में निर्मित सुरंगें व पुल इस लाइन को और अधिक महत्व देते है। सभी सुरंगें 1900 और 1903 के बीच बनी है और सबसे लम्बी सुरंग बड़ोग सुरंग है जोकि 1 कि.मी. से अधिक लम्बी है। 15 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा की कछुए की रफ़्तार से चलने वाली इस ट्रैन में बैठकर आप हिमाचल के प्रारंभिक पर्वतों को करीब से तथा इत्मीनान से निहारने का मौका पा सकते हैं। यह ट्रैन कालका से शिमला के 96 किलोमीटर के सफ़र को 6 से 7 घंटे में तय करती है।
ट्रेन किराया:
रु. 270/- प्रथम श्रेणी में
रु. 25/- जनरल
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन:
0 किमी कालका
6 किमी टकसाल
11 किमी गुम्मन
17 किमी कोटी
27 किमी सनवारा
33 किमी धर्मपुर
39 किमी कुमारहट्टी
43 किमी बड़ोग
47 किमी सोलन
53 किमी सलोगड़ा
59 किमी कंडाघाट
65 किमी कनोह
73 किमी कैथलीघाट
78 किमी शोघी
85 किमी तारादेवी
90 किमी टोटु (जतोग)
93 किमी समर हिल
96 किमी शिमला
शिमला जाने का सबसे अच्छा समय:
वैसे तो आप शिमला में कभी भी घूमने जा सकते हो लेकिन कुछ समय ऐसा होता है कि जब आप जायेंगे तो और ज्यादा मजा आएगा।
अक्टूबर - मार्च: अक्टूबर और मार्च के बीच में वहां का तापमान -2 से 8 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। दिसंबर और जनवरी के बीच वहां काफी भारी बर्फबारी होती है। हनीमून के लिए भी यह सबसे अच्छा समय है।
अप्रैल - जून: गर्मी के महीनों में औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस होता है।मौसम साहसिक खेलों जैसे पैराग्लाइडिंग, ट्रेकिंग और कैंपिंग के लिए आदर्श रहता है।
जुलाई - सितम्बर: मॉनसून वास्तव में शिमला की यात्रा का एक अच्छा समय नहीं है क्योंकि शहर में कभी-कभी हिमस्खलन और भूस्खलन का अनुभव होता है। हालांकि, हरे घास के मैदान हर जगह तैरते हुए बादलों के साथ शहर के सबसे आकर्षक पहलू बनते हैं।
शिमला तक कैसे पहुंचे:
हवाई मार्ग
शिमला आसपास के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। जम्बरट्टी में शिमला हवाई अड्डा, शहर में ही है। शिमला के पास के हवाईअड्डे चंडीगढ़ और नई दिल्ली हैं।
रेलमार्ग
विश्व धरोहर रेलगाड़ी शिमला से कालका तक जा रही है। यह टॉय ट्रेन बच्चों के लिए काफी लोकप्रिय है। कालका भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़कमार्ग
शिमला नई दिल्ली से लगभग 350 किमी दूर है, और चंडीगढ़ से 118 किमी दूर है। दिल्ली से चंडीगढ़ के लिए प्राइवेट और सरकारी बस चलती हैं।
शिमला में सबसे अच्छी जगह:
- समर हिल
- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज
- अन्नान्दाले
- जाखू हिल
- द स्कैंडल पॉइंट, रिज
- द शिमला स्टेट म्यूजियम
- नालदेहरा एंड शैली पीक
- चैडविक फॉल्स
- कुफरी
- चैल
4. माथेरान हिल रेलवे
माथेरान हिल रेलवे पश्चिमी घाट में नेरल और माथेरान के बीच 20 किमी (12 मील) की दूरी पर है। माथेरान, मुंबई से मात्र 110 किमी दूर रायगढ़ जिले में मौजूद है, प्राकृतिक खूबसूरती से भरा छोटा सा हिल स्टेशन - माथेरान। कर्जत तहसील के अंदर आने वाला यह भारत का सबसे छोटा हिल स्टेशन है। यह पश्चिमी घाट पर्वत शृंखला में समुद्र तल से 800 मीटर (2625 फीट) की उँचाई पर बसा है।मुंबई और पुणे से इसकी दूरी क्रमश: 90 और 120 किलो मीटर है। यहां की खासियत है कि यहां किसी भी प्रकार के वाहन का प्रवेश वर्जित है। यही वजह है कि यहां का वातावरण मन को शांति प्रदान करता है। माथेरान का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है नेरल स्टेशन जो यहां से 9 किलोमीटर दूर है। इसके आगे वाहनों का प्रवेश वर्जित है। यहां पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है यहां की टॉय ट्रेन जिसके हाल ही में 100 साल पूरे हुए हैं। इसके अलावा ट्रॉली से भी यहां तक पहुंचा जा सकता है।
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन:
नेरल रेलवे स्टेशन
जुम्मापत्ति रेलवे स्टेशन
वाटर पाइप रेलवे स्टेशन
अमन लॉज रेलवे स्टेशन
माथेरान रेलवे स्टेशन
ट्रेन किराया:
रु. 30/- जनरल
माथेरान के कुछ शानदार दर्शनीय स्थल:
चारलोटी झील
चारलोटी झील माथेरान के दर्शनीय स्थलों में से एक है। यह पिकनिक मनाने के लिए बेहद आकर्षक जगह है जहाँ प्राकृतिक सुंदरता का लुफ्त उठाया जा सकता है। कहा जाता है कि इस झील से ही माथेरान के लिए पानी सप्लाई होता है।
पेमास्टर पार्क
पेमास्टर पार्क अपनी सुंदरता और आकर्षक नज़ारों से पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता रहता है। ख़ास करके बच्चे इसका आनंद जी भर के उठाते हैं।
रामबाग
रामबाग माथेरान के घने जंगलों के बीचों बीच बना हुआ है। इस दर्शनीय स्थल का मुख्य आकर्षक रामबाग में बनी सीढियाँ हैं। इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है की शिवजी अपने युध्द अभ्यास इन्हीं सीढ़ियों के पास किया करते थे।
ओलम्पिया रेसकोर्स
ओलम्पिया रेसकोर्स में घुड़सवारी का आनंद लिया जा सकता है। यहाँ हर साल खेलकूद व घुड़सवारी का आयोजन किया जाता है।
पैनोरमा पॉइन्ट
पैनोरमा पॉइन्ट माथेरान का बेहद आकर्षक पिकनिक स्थल है। जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता रहता है।
कैथेड्रल पार्क
कैथेड्रल पार्क बेहद आकर्षक रमणीक स्थल है। इस स्थल का बेहद आकर्षक रूप रात के वक़्त देखने योग्य होता है। यहाँ का दिलकश नज़ारा देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से यहाँ आते हैं।
मंकी पॉइन्ट
मंकी पॉइंट माथेरान के दर्शनीय स्थलों में से एक है। जो अपने आकर्षक से सैलानियों को अपनी और लुभाता है। जिसकी वजह से पर्यटकों की यहाँ भीड़ उमड़ी रहती है।
माथेरान जाने का सबसे अच्छा समय:
माथेरान में साल भर मौसम सौहाद्रपूर्ण और ग्रहणशील होता है। वातावरण आद्र नही होता और वर्ष भर पर्यटकों को बुलाता है। ठंड का मौसम माथेरान घूमने के लिए और आनंद उठाने के लिए उपयुक्त है।
कैसे जाएं:
रेलमार्ग
माथेरान से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित नेरल रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। नेरल जंक्शन सीएसटी से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। नेरल से माथेरान तक टैक्सी का किराया लगभग 400 रूपये है। एक छोटी ट्रेन भी है जो नेरल को माथेरान के मुख्य बाज़ार से जोड़ती है।
सड़कमार्ग
सार्वजनिक और निजी बसें माथेरान को महाराष्ट्र के सभी प्रमुख शहरों से जोड़ती हैं। लक्ज़री औए डीलक्स बसें सामान्य बस से ज़्यादा किराया लेती हैं। रास्ते के द्वारा यात्रा पर्यटकों के लिए दृश्य दावत होती है क्योंकि पृष्ठभूमि में इतने सुंदर होतें है जिन पर से आप अपनी आँख नहीं हटा सकते।
5. कांगड़ा घाटी रेलवे
कांगड़ा घाटी रेलवे उप-हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। यह ट्रेन पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच 163 किलोमीटर (101 मील) की दूरी तय करती है, जो प्राकृतिक सुंदरता और प्राचीन हिंदू तीर्थों के लिए जाना जाता है। इस ट्रैक पर सबसे ऊंचा स्टेशन अहाजू स्टेशन है, जिसकी ऊंचाई 1,291 मीटर (4,236 फीट) है और जोगिन्दर नगर में टर्मिनस 1,189 मीटर (3,901 फीट) है।
कांगड़ा घाटी रेल खंड के कुछ शानदार दर्शनीय स्थल:
ज्वाला देवी मंदिर
ज्वालामुखी रोड स्टेशन से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से मंदिर के लिए सुबह 5 बजे रात्रि 8 बजे तक बसें उपलब्ध रहती हैं।
चिंतपूर्णी देवी मंदिर
ज्वालामुखी रोड स्टेशन से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां भी ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से बस द्वारा जाया जा सकता है।
धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)
कांगड़ा या कांगड़ा मंदिर रेलवे स्टेशन से तकरीबन17 किलोमीटर की दूरी पर है। नगरोटा रेलवे स्टेशन से भी उतर कर कांगड़ा जाया जा सकता है।
मैक्लोडगंज
कांगड़ा स्टेशन से 27 किलोमीटर है जो बौद्ध धर्म के लोगों को आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां जाने के लिए आप चामुंडा मार्ग रेलवे स्टेशन भी उतर सकते हैं।
बृजेश्वरी देवी मंदिर
यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। कहा जाता है पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था।, इस मंदिर को बहुत बार विदेशी लुटेरों द्वारा लूटा गया। महमूद गजनवी ने 1009 ई॰ में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया था। यह मंदिर 1905 ई॰ में विनाशकारी भूकम्प से पूरी तरह नष्ट हो गया था। सन् 1920 में इसे दोबारा बनवाया गया।
ट्रेन किराया:
रु. 35/- जनरल
कैसे जाएं:
हवाईमार्ग
काँगड़ा से 7 कि॰मी॰ की दूरी पर हवाईअड्डा है जो सीधी दिल्ली से जुड़ा हुआ है।
रेलमार्ग
पठानकोट काँगड़ा का निकटतम ब्रोड गेज रेल मुख्यालय है। पठानकोट काँगड़ा से लगभग 90 कि॰मी॰ की दूरी पर है। मुकरियन 30 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित निकटतम रेलवे स्टेशन है।
सड़कमार्ग
काँगड़ा बेहतर सड़क मार्ग से धर्मशाला से जुड़ा है जो 18 किमी दूर स्थित है। धर्मशाला हिमाचल और निकटवर्ती शहरों से जुड़ा हुआ है।
6. जम्मू-बारामूला रेलवे
जम्मू-बारामूला रेलवे भारत में निर्मित की जा रही एक रेलवे लाइन है जो कि देश के बाकी के हिस्से को जम्मू और कश्मीर राज्य के साथ मिलाएगी। रेलवे जम्मू से शुरू होता है और, जब पूरी की, 345 किलोमीटर (214 मील) कश्मीर घाटी के पश्चिमोत्तर किनारे पर बारामूला के शहर के लिए यात्रा करेंगे।
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन:
0 किमी बारामुला
8 किमी सोपोर
15 किमी हमरे
23 किमी पत्तन
31 किमी मज्होम
46 किमी बडगाम
57 किमी श्रीनगर
63 किमी पाम्पोर
झेलम पुल
69 किमी काकापुरा
79 किमी अवन्तिपुरा
86 किमी पंचगाम
93 किमी बिजबेहारा
100 किमी अनंतनाग
107 किमी सदूर
112 किमी क़ाज़ीगुंड
पीर पंजाल रेल सुरंग (11 किमी)
130 किमी बनिहाल
चारील
रेपोर
लोले
कोहली
संगल्दन सुरंग (7 किमी)
संगल्दन
बरल्ला
सुरुकोट
बक्कल
चनाब पुल
सलाल
अंजी खाद पुल
रियासी
260 किमी कटरा
275 किमी उधमपुर
294 किमी रामनगर
तवी पुल
316 किमी मानवाल
324 किमी संगर
328 किमी बल्जता
338 किमी जम्मू (जम्मू तवी)
7. लामडिंग बदरपुर रेलवे
असम में लामडिंग-बदरपुर खंड में 5 फीट 6 इंच (1,676 मिमी) रेलवे लाइन शामिल हैं जो लुमडिंग से बदरपुर तक हैं। इस मार्ग में कई पुल और सुरंग हैं। इस मार्ग की कुल लंबाई 210 किमी है।